Saturday, September 14, 2024


हिंदी दिवस 14 सितंबर 2024


 हर साल हिंदी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है। इस दिन ही देवनागरी लिपि में हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया गया था। साल 1953 में पहली बार हिंदी दिवस का आयोजन हुआ था। तभी से यह सिलसिला बना हुआ है। हिंदी दिवस को मनाने का उद्देश्य हिंदी भाषा की स्थिति और विकास पर मंथन को ध्यान में रखना है। देश में करीब 77 प्रतिशत से भी ज्यादा लोग हिंदी बोलते हैं।

भारत की मुख्य भाषा हिंदी को कब मिली पहचान-

14 सितंबर 1949 को  राजेंद्र सिम्हा के 50 वें जन्मदिन पर हिंदी को आधिकारिक भाषा (Official Language) के रूप में अपनाया गया और इसके बाद प्रचार-प्रसार को आगे बढ़ाने के प्रयासों में तेजी आई. भारत के संविधान द्वारा 26 जनवरी 1950 को यह निर्णय लागू किया गया था. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 (Article 343) के तहत देवनागरी लिपि (Devanagari Script) में लिखी गई हिंदी (120 से अधिक भाषाओं में प्रयुक्त होने वाली लिपि) को आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया गया था. 

सरकारी कार्यालयों और शिक्षण संस्थानों में 15 दिन तक हिंदी पखवाड़ा मनाया जाता है। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा की ओर से हिंदी को आजाद भारत की मुख्य भाषा का दर्जा प्राप्त हुआ था। इसका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 343 (1) में किया गया है। अनुच्छेद के अनुसार भारत की राजभाषा ‘हिंदी’ और लिपि ‘देवनागरी’ है।

       क्यों मनाया जाता है हिंदी दिवस-

हिंदी दिवस के मौके पर देशभर के स्कूलों, कॉलेज और शैक्षणिक संस्थानों में कई तरह की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। हिंदी पूरे विश्व में चौथी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। वहीं दूसरी ओर भारत में अन्य कई भाषाएं विलुप्त हो रही हैं। जो चिंतन का विषय है। ऐसे में हिंदी की महत्ता बताने और प्रचार-प्रसार के लिए हिंदी दिवस को मनाया जाता है।

गृह मंत्रालय ने 25 मार्च 2015 के अपने आदेश में हिंदी दिवस पर प्रतिवर्ष दिए जाने वाले दो पुरस्कारों के नाम बदल दिए थे. 1986 में स्थापित इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार को बदलकर राजभाषा कीर्ति पुरस्कार’ और राजीव गांधी राष्ट्रीय ज्ञान-विज्ञान मौलिक लेखन पुरस्कार को बदलकर राजभाषा गौरव पुरस्कार कर दिया गया था.

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हिंदी की ई -पुस्तकें

हिंदी उपन्यास

ई पुस्तकालय - मुफ्त पुस्तकालय

मुंशी प्रेमचंद साहित्य

अभिव्यक्ति हिंदी कहानियां

प्रेरणादाई हिंदी की कहानियां

नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके आप हिंदी प्रश्नोत्तरी में भाग ले सकते हैं-

https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSewpID7fh8xwBVXD2oeiLTLG8OfWcT__RNekW8mO7LQxZdhLw/viewform

Wednesday, June 19, 2024

READING WEEK/MONTH 2024

Reading Day Pledge 

READING WEEK 2024
KV Sec-3 Rohini Celebrating "Reading Day, Reading Week and Reading Month" from 19th June to 25th June 2024 for the rememberancee of Mr. P.N. Panicker, the father of Library Movement.
Email *
Mr. P.N. Panicker
Name *
Class/Designation *
Do You read pledge  ? *
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Monday, September 5, 2022


सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन



                         शिक्षक समाज के ऐसे शिल्पकार होते हैं जो बिना किसी मोह के इस समाज को तराशते हैं। शिक्षक का काम सिर्फ किताबी ज्ञान देना ही नहीं बल्कि सामाजिक परिस्थितियों से छात्रों को परिचित कराना भी होता है। शिक्षकों की इसी महत्ता को सही स्थान दिलाने के लिए ही हमारे देश में सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने पुरजोर कोशिशें की, जो खुद एक बेहतरीन शिक्षक थे।

अपने इस महत्वपूर्ण योगदान के कारण ही, भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन 5 सितंबर को भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनके जन्मदिवस के उपलक्ष्य में शिक्षक दिवस मनाकर डॉ.राधाकृष्णन के प्रति सम्मान व्यक्त किया जाता है। 

 जीवन परिचय –  5 सितंबर 1888 को चेन्नई से लगभग 200 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित एक छोटे से कस्बे तिरुताणी में डॉक्टर राधाकृष्णन का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम सर्वपल्ली वी. रामास्वामी और माता का नाम श्रीमती सीता झा था। रामास्वामी एक गरीब ब्राह्मण थे और तिरुताणी कस्बे के जमींदार के यहां एक साधारण कर्मचारी के समान कार्य करते थे।  डॉक्टर राधाकृष्णन अपने पिता की दूसरी संतान थे। उनके चार भाई और एक छोटी बहन थी छः बहन-भाईयों और दो माता-पिता को मिलाकर आठ सदस्यों के इस परिवार की आय अत्यंत सीमित थी। इस सीमित आय में भी डॉक्टर राधाकृष्णन ने सिद्ध कर दिया कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती। उन्होंने न केवल महान शिक्षाविद के रूप में ख्याति प्राप्त की,बल्कि देश के सर्वोच्च राष्ट्रपति पद को भी सुशोभित किया। स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन को बचपन में कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। सर्वपल्ली राधाकृष्णन का शुरुआती जीवन तिरुतनी और तिरुपति जैसे धार्मिक स्थलों पर ही बीता।  यद्यपि इनके पिता धार्मिक विचारों वाले इंसान थे लेकिन फिर भी उन्होंने राधाकृष्णन को पढ़ने के लिए क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल,तिरुपति में दाखिल कराया। इसके बाद उन्होंने वेल्लूर और मद्रास कॉलेजों में शिक्षा प्राप्त की। वह शुरू से ही एक मेधावी छात्र थे।  अपने विद्यार्थी जीवन में ही उन्होंने बाइबल के महत्वपूर्ण अंश याद कर लिए थे,जिसके लिए उन्हें विशिष्ट योग्यता का सम्मान भी प्रदान किया गया था। उन्होंने वीर सावरकर और विवेकानंद के आदर्शों का भी गहन अध्ययन कर लिया था। सन 1902 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा अच्छे अंकों में उत्तीर्ण की जिसके लिए उन्हें छात्रवृत्ति प्रदान की गई।  कला संकाय में स्नातक की परीक्षा में वह प्रथम आए। इसके बाद उन्होंने दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर किया और जल्द ही मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हुए। डॉ.राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित कराया।

Thursday, September 30, 2021

हिन्दी पखवाड़ा - पुस्तक प्रदर्शिनी  

2022-23

हिंदी को 14 सितंबर 1949 को भारत की राष्ट्रीय भाषा के रूप में अपनाया गया तब से हिंदी भाषा को एक उच्च दर्जा प्राप्त हुआ और इसी उपलक्ष्य में हम प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाते हैं।

हिंदी एक इंडो-आर्यन भाषा है, जिसे देवनागरी लिपि में भारत की आधिकारिक भाषाओं में से एक के रूप में लिखा गया है। राजेंद्र सिंह, हजारी प्रसाद द्विवेदी, काका कालेलकर, मैथिलीशरण गुप्त, और सेठ गोविंद दास गोविंद जैसे लोगों ने हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा बनाए जाने के पक्ष में कड़ी पैरवी की। भारतीय संविधान के आधार पर, अनुच्छेद 343 के अनुसार, हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया गया था। हमारी मातृभाषा हिंदी और देश के प्रति सम्मान दिखाने के लिए हिंदी दिवस का आयोजन किया जाता है।

हिंदी दिवस पूरे भारत में बहुत उत्साह और गर्व के साथ मनाया जाता है। शिक्षण संस्थानों से लेकर सरकारी दफ्तरों तक सभी हमारी राष्ट्रभाषा को सम्मान देते हैं।

इतिहासकारों का मानना है कि हिन्दी विद्वानों द्वारा अपनी महान साहित्यिक कृतियों में प्रयोग की जाने वाली प्रमुख भाषा रही है। रामचरितमानस एक साहित्यिक कृति है जो हिंदी में भगवान राम की कहानी का वर्णन करती है और गोस्वामी तुलसीदास की सबसे महत्वपूर्ण कृतियों में से एक है, जिसे 16 वीं शताब्दी में लिखा गया था। हिंदी सबसे आदिम भाषाओं में से एक है जो मूल रूप से संस्कृत भाषा से संबंधित है। अतीत से, हिंदी एक भाषा के रूप में विकसित होकर हमारी राष्ट्रभाषा बन गई है।

वर्ष 1917 में, महात्मा गांधी ने भरूच में गुजरात शिक्षा सम्मेलन में प्रस्तुत एक भाषण में हिंदी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने जोर देकर कहा कि हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए और अर्थव्यवस्था, धर्म एवं राजनीति के लिए संचार के रूप में भी इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

देश के सर्वप्रथम प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू ने पहली बार 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाने का फैसला किया था। हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में भारत के विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों में हिंदी साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों, प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता हैं जिसमें छात्र बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। जहां छात्र हिंदी में विभिन्न कविताओं का पाठ करते हैं तथा हिंदी निबंध पढ़कर हिंदी भाषा को गर्वान्वित करते हैं। हिंदी दिवस के इस अवसर पर प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं और हिंदी में कहानियां पढ़ी जाती हैं। हमारे लिए यह बहुत सम्मान की बात है कि हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों प्लेटफार्मों में लोकप्रियता हासिल कर रही है।

आज के आधुनिक समय में लोग पश्चिमी सभ्यता से काफी प्रभावित हुए हैं। हिन्दी भाषा का महत्व समाप्त होता जा रहा है। हिंदी दिवस लोगों को उनकी जड़ों से जोड़े रखता है और लोगों को उनकी मूल संस्कृति की याद दिलाता है। 

Wednesday, June 23, 2021

Reading Week Celebration Program (19-25 June 2023)

CELEBRATION OF READING WEEK

In memory of honoring the Father of the “Library Movement in Kerala” Late Shri P. N. Panicker, country is celebrating Reading Week from 19 June to 25 June 2023, the various activities will be conducting by the Library of Kendriya Vidyala Sec-3, Rohini, Delhi. Details are as under:-

Date

 

Competition

Class

19 Jun 2023

Quiz  on Reading Based on Comprehensive

VI-VIII

20 June 2023

 

Story Telling

VI- VIII

22 June 2023

 

Poem Recitation (Books)

VI-IX

23 June 2023

Essay Writing (Book Reading during Lockdown) 

VI- X

24 June 2023

Quiz on Books and Authors

(Play through Library Blog)

VI – XII

25 June 2023

 

Biography of any Author or Poet

VI – XII

 

Friday, July 31, 2020

मुंशी प्रेमचंद जी का जीवन परिचय



नाम : धनपत राय श्रीवास्तव उर्फ़ नवाब राय उर्फ़ मुंशी प्रेमचंद।
जन्म : 31 जुलाई 1880 बनारस।
पिता : अजीब राय।
माता : आनंदी देवी।
पत्नी : शिवरानी देवी।

जीवन परिचय:
  प्रेमचंद (३१ जुलाई, १८८० - ८ अक्टूबर १९३६) हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव वाले प्रेमचंद को नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया।
प्रेमचन्द की रचना-दृष्टि विभिन्न साहित्य रूपों में प्रवृत्त हुई। बहुमुखी प्रतिभा संपन्न प्रेमचंद ने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की सृष्टि की। प्रमुखतया उनकी ख्याति कथाकार के तौर पर हुई और अपने जीवन काल में ही वे उपन्यास सम्राटकी उपाधि से सम्मानित हुए। उन्होंने कुल १५ उपन्यास, ३०० से कुछ अधिक कहानियाँ, ३ नाटक, १० अनुवाद, ७ बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की लेकिन जो यश और प्रतिष्ठा उन्हें उपन्यास और कहानियों से प्राप्त हुई, वह अन्य विधाओं से प्राप्त न हो सकी। यह स्थिति हिन्दी और उर्दू भाषा दोनों में समान रूप से दिखायी देती है।
मुंशी प्रेमचन्द  का जन्म 31 जुलाई 1880 को भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी शहर के निकट लमही गाव में हुआ था इनके पिता का नाम अजायबराय था जो की लमही गाव में ही डाकघर के मुंशी थे और इनकी माता का नाम आनंदी देवी था मुंशी प्रेमचन्द का वास्तविक नाम धनपतराय श्रीवास्तव था लेकिन इन्हें मुंशी प्रेमचन्द और नवाब राय के नाम से ज्यादा जाना जाता है।
        प्रेमचन्द का बचपन काफी कष्टमय बिता महज सात वर्ष पूरा करते करते ही इनकी माता का देहांत हो गया तत्पश्चात इनके पिता की नौकरी गोरखपुर में हो गया जहा पर इनके पिता ने दूसरी शादी कर ली लेकिन कभी भी प्रेमचन्द को अपनी सौतेली माँ से अपने माँ जैसा प्यार नही मिला और फिर चौदह साल की उम्र में इनके पिताजी का भी देहांत हो गया इस तरह इनके बचपन में इनके उपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा।
 एक दिन ऐसी हालत हो गई कि वे अपनी सारी पुस्तकों को लेकर एक बुकसेलर के पास पहुंच गए। वहाँ एक हेडमास्टर मिले जिन्होंने आपको अपने स्कूल में अध्यापक पद पर नियुक्त किया। अपनी गरीबी से लड़ते हुए प्रेमचन्द ने अपनी पढ़ाई मैट्रिक तक पहुंचाई। जीवन के आरंभ में आप अपने गाँव से दूर बनारस पढ़ने के लिए नंगे पाँव जाया करते थे। इसी बीच पिता का देहान्त हो गया। पढ़ने का शौक था, आगे चलकर वकील बनना चाहते थे। मगर गरीबी ने तोड़ दिया।

        
महात्मा गांधी के आह्वान पर उन्होने 1921 में अपनी नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़ने के बाद कुछ दिनों तक उन्होने ने मर्यादा नामक पत्रिका में सम्पादन का कार्य किया।उसके बाद छह साल तक माधुरी नामक पत्रिका में संपादन का काम किया। 1930 से 1932 के बीच उन्होने अपना खुद का मासिक पत्रिका हंस  एवं साप्ताहिक पत्रिका जागरण निकलना शुरू किया। कुछ दिनों तक उन्होने ने मुंबई मे फिल्म के लिए कथा भी लिखी।
लेखन कार्य :
 प्रेमचंद ने अपने जीवन में तक़रीबन 300 लघु कथाये और 14 उपन्यास, बहोत से निबंध और पत्र भी लिखे है। इतना ही नही उन्होंने बहोत से बहु-भाषिक साहित्यों का हिंदी अनुवाद भी किया है। प्रेमचंद की बहोत सी प्रसिद्ध रचनाओ का उनकी मृत्यु के बाद इंग्लिश अनुवाद भी किया गया है। सादे एवं सरल जीवन के मालिक प्रेमचंद हमेशा मस्त रहते थे।
धनपत राय ने अपना पहला लेख नवाब रायके नाम से ही लिखा था. उनका पहला लघु उपन्यास असरार ए माबिद (हिंदी में देवस्थान रहस्य) था जिसमे उन्होंने मंदिरों में पुजारियों द्वारा की जा रही लुट-पात और महिलाओ के साथ किये जा रहे शारीरिक शोषण के बारे में बताया. उनके सारे लेख और उपन्यास 8 अक्टूबर 1903 से फेब्रुअरी 1905 तक बनारस पर आधारित उर्दू साप्ताहिक आवाज़-ए-खल्कफ्रोम में प्रकाशित किये जाते थे.
प्रेमचंद ने 1901 मे उपन्यास लिखना शुरू किया। कहानी 1907 से लिखने लगे। उर्दू में नवाबराय नाम से लिखते थे। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों लिखी गई उनकी कहानी सोज़ेवतन 1910 में ज़ब्त की गई , उसके बाद अंग्रेज़ों के उत्पीड़न के कारण वे प्रेमचंद नाम से लिखने लगे। 1923 में उन्होंने सरस्वती प्रेस की स्थापना की। 1930 में हंस का प्रकाशन शुरु किया। इन्होने 'मर्यादा', 'हंस', जागरण' तथा 'माधुरी' जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का संपादन किया।
आधुनिक कथा साहित्य के जन्मदाता कहलाए। उन्हें कथा सम्राट की उपाधि प्रदान की गई। उन्होंने 300 से अधिक कहानियां लिखी हैं। इन कहानियों में उन्होंने मनुष्य के जीवन का सच्चा चित्र खींचा है। आम आदमी की घुटन, चुभन व कसक को अपनी कहानियों में उन्होंने प्रतिबिम्बित किया। इन्होंने अपनी कहानियों में समय को ही पूर्ण रूप से चित्रित नहीं किया वरन भारत के चिंतन व आदर्शों को भी वर्णित किया है। 8 अक्टूबर 1936 को जलोदर रोग से उनका देहावसान हुआ
पुस्तके :
गोदान 1936 
कर्मभूमि 1932 
निर्मला 1925 
कायाकल्प 1927 
रंगभूमि 1925 
सेवासदन 1918
गबन 1928 
प्रेमचन्द की अमर कहानिया 
नमक का दरोगा 
दो बैलो की कथा 
पूस की रात 
पंच परमेश्वर 
माता का हृदय 
नरक का मार्ग 
वफ़ा का खंजर 
पुत्र प्रेम 
घमंड का पुतला 
बंद दरवाजा 
कायापलट 
कर्मो का फल 
कफन 
बड़े घर की बेटी 
राष्ट्र का सेवक 
ईदगाह 
मंदिर और मस्जिद 
प्रेम सूत्र 
माँ 
वरदान 
काशी में आगमन 
बेटो वाली विधवा 
सभ्यता का रहस्य