मुंशी प्रेमचंद जी का जीवन परिचय
नाम : धनपत राय
श्रीवास्तव उर्फ़ नवाब राय उर्फ़ मुंशी प्रेमचंद।
जन्म : 31 जुलाई 1880 बनारस।
पिता : अजीब राय।
माता : आनंदी देवी।
पत्नी : शिवरानी
देवी।
जीवन परिचय:
प्रेमचंद (३१ जुलाई, १८८० - ८ अक्टूबर
१९३६) हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। मूल नाम धनपत राय
श्रीवास्तव वाले प्रेमचंद को नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता
है। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार
शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद
ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के
साहित्य का मार्गदर्शन किया।
प्रेमचन्द की
रचना-दृष्टि विभिन्न साहित्य रूपों में प्रवृत्त हुई। बहुमुखी प्रतिभा संपन्न
प्रेमचंद ने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक
विधाओं में साहित्य की सृष्टि की। प्रमुखतया उनकी ख्याति कथाकार के तौर पर हुई और
अपने जीवन काल में ही वे ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि से सम्मानित
हुए। उन्होंने कुल १५ उपन्यास, ३०० से कुछ अधिक
कहानियाँ, ३ नाटक, १० अनुवाद, ७ बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की
लेकिन जो यश और प्रतिष्ठा उन्हें उपन्यास और कहानियों से प्राप्त हुई, वह अन्य विधाओं से
प्राप्त न हो सकी। यह स्थिति हिन्दी और उर्दू भाषा दोनों में समान रूप से दिखायी
देती है।
मुंशी प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई 1880 को भारत के उत्तर
प्रदेश राज्य के वाराणसी शहर के निकट लमही गाव में हुआ था इनके पिता का नाम
अजायबराय था जो की लमही गाव में ही डाकघर के मुंशी थे और इनकी माता का नाम आनंदी
देवी था मुंशी प्रेमचन्द का वास्तविक नाम धनपतराय श्रीवास्तव था लेकिन इन्हें
मुंशी प्रेमचन्द और नवाब राय के नाम से ज्यादा जाना जाता है।
प्रेमचन्द का बचपन
काफी कष्टमय बिता महज सात वर्ष पूरा करते करते ही इनकी माता का देहांत हो गया
तत्पश्चात इनके पिता की नौकरी गोरखपुर में हो गया जहा पर इनके पिता ने दूसरी शादी
कर ली लेकिन कभी भी प्रेमचन्द को अपनी सौतेली माँ से अपने माँ जैसा प्यार नही मिला
और फिर चौदह साल की उम्र में इनके पिताजी का भी देहांत हो गया इस तरह इनके बचपन
में इनके उपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा।
एक दिन ऐसी हालत हो
गई कि वे अपनी सारी पुस्तकों को लेकर एक बुकसेलर के पास पहुंच गए। वहाँ एक
हेडमास्टर मिले जिन्होंने आपको अपने स्कूल में अध्यापक पद पर नियुक्त किया। अपनी
गरीबी से लड़ते हुए प्रेमचन्द ने अपनी पढ़ाई मैट्रिक तक पहुंचाई। जीवन के आरंभ में
आप अपने गाँव से दूर बनारस पढ़ने के लिए नंगे पाँव जाया करते थे। इसी बीच पिता का
देहान्त हो गया। पढ़ने का शौक था, आगे चलकर वकील बनना
चाहते थे। मगर गरीबी ने तोड़ दिया।
महात्मा गांधी के आह्वान पर उन्होने 1921 में अपनी नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़ने के बाद कुछ दिनों तक उन्होने ने मर्यादा नामक पत्रिका में सम्पादन का कार्य किया।उसके बाद छह साल तक माधुरी नामक पत्रिका में संपादन का काम किया। 1930 से 1932 के बीच उन्होने अपना खुद का मासिक पत्रिका हंस एवं साप्ताहिक पत्रिका जागरण निकलना शुरू किया। कुछ दिनों तक उन्होने ने मुंबई मे फिल्म के लिए कथा भी लिखी।
लेखन कार्य :
प्रेमचंद ने अपने
जीवन में तक़रीबन 300 लघु कथाये और 14 उपन्यास, बहोत से निबंध और
पत्र भी लिखे है। इतना ही नही उन्होंने बहोत से बहु-भाषिक साहित्यों का हिंदी
अनुवाद भी किया है। प्रेमचंद की बहोत सी प्रसिद्ध रचनाओ का उनकी मृत्यु के बाद
इंग्लिश अनुवाद भी किया गया है। सादे एवं सरल जीवन के मालिक प्रेमचंद हमेशा मस्त
रहते थे।
धनपत राय ने अपना
पहला लेख “नवाब राय” के नाम से ही लिखा था. उनका पहला लघु
उपन्यास असरार ए मा’बिद (हिंदी में – देवस्थान रहस्य) था
जिसमे उन्होंने मंदिरों में पुजारियों द्वारा की जा रही लुट-पात और महिलाओ के साथ
किये जा रहे शारीरिक शोषण के बारे में बताया. उनके सारे लेख और उपन्यास 8 अक्टूबर 1903 से फेब्रुअरी 1905 तक बनारस पर आधारित
उर्दू साप्ताहिक आवाज़-ए-खल्कफ्रोम में प्रकाशित किये जाते थे.
प्रेमचंद ने 1901 मे उपन्यास लिखना
शुरू किया। कहानी 1907 से लिखने लगे। उर्दू में नवाबराय नाम से
लिखते थे। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों लिखी गई उनकी कहानी सोज़ेवतन 1910 में ज़ब्त की गई , उसके बाद अंग्रेज़ों
के उत्पीड़न के कारण वे प्रेमचंद नाम से लिखने लगे। 1923 में उन्होंने सरस्वती
प्रेस की स्थापना की। 1930 में हंस का प्रकाशन शुरु किया। इन्होने 'मर्यादा', 'हंस', जागरण' तथा 'माधुरी' जैसी प्रतिष्ठित
पत्रिकाओं का संपादन किया।
आधुनिक कथा साहित्य
के जन्मदाता कहलाए। उन्हें कथा सम्राट की उपाधि प्रदान की गई। उन्होंने 300 से अधिक कहानियां
लिखी हैं। इन कहानियों में उन्होंने मनुष्य के जीवन का सच्चा चित्र खींचा है। आम
आदमी की घुटन, चुभन व कसक को अपनी कहानियों में उन्होंने प्रतिबिम्बित किया। इन्होंने
अपनी कहानियों में समय को ही पूर्ण रूप से चित्रित नहीं किया वरन भारत के चिंतन व
आदर्शों को भी वर्णित किया है। 8 अक्टूबर 1936 को जलोदर रोग से उनका
देहावसान हुआ’
पुस्तके :
• गोदान 1936
• कर्मभूमि 1932
• निर्मला 1925
• कायाकल्प 1927
• रंगभूमि 1925
• सेवासदन 1918
• गबन 1928
• प्रेमचन्द की अमर
कहानिया
• नमक का दरोगा
• दो बैलो की कथा
• पूस की रात
• पंच परमेश्वर
• माता का हृदय
• नरक का मार्ग
• वफ़ा का खंजर
• पुत्र प्रेम
• घमंड का पुतला
• बंद दरवाजा
• कायापलट
• कर्मो का फल
• कफन
• बड़े घर की बेटी
• राष्ट्र का सेवक
• ईदगाह
• मंदिर और मस्जिद
• प्रेम सूत्र
• माँ
• वरदान
• काशी में आगमन
• बेटो वाली विधवा
• सभ्यता का रहस्य